अफवाहों का गरम है आज यहां बाजार
अफवाहों का गरम है,आज यहां बाजार।
बेच रहे हैं झूठ नित, नेता हो लाचार।।(१)
मर्यादा भूले सभी,नेता जी इस बार।
सेना पर भी कर रहे,नित ही नये प्रहार
।।(२)
क्या लेना है देश से,टूटे या बिखराय।
उल्लू सीधा कर रहे, जनता को भरमाय।।(३)
बेच रहे हैं झूठ को,भरी बजरिया आज।
उनको तो कुर्सी मिले,डूबे सकल समाज।।(४)
सर्दी भी कमतर दिखे,भारी नेता बोल।
अन्त: में सब कुछ भरा,बाहर दिखता खोल।।(५)
सर्दी की ठिठुरन भली, सीधा अनुभव होय।
नेता की भाषा जटिल,समुझ सके नहि कोय।।(६)
मिश्री से मीठे हुए,नेता जी के बोल।
लगता शीघ्र चुनाव का,बजने वाला ढोल।।(७)