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4 Mar 2021 · 1 min read

आज कुटिया पधारे जो श्रीराम जी

212 212 212 212
आज कुटिया पधारे जो श्रीराम जी, देख शबरी कि आँखे सजल हो गयीं।
राह में फूल नित जो सजाती रही, साधना आज उसकी सफल हो गयी।।

रूप सुन्दर मनोहर धनुष हाथ में,
और हैं साथ में भ्रात उनके लखन।
राम ने जब कुटी में किया आगमन,
देखते ही प्रफुल्लित हुआ आज मन।।
प्रेम से दौड़ शबरी मिली राम से,
आज कठनाइयाँ सब सरल हो गयी।
राह में फूल नित जो सजाती रही, साधना आज उसकी सफल हो गयी।।

खिल गए हैं सुगंधित सभी पुष्प भी,
और कोयल मधुर राग गाने लगी।
मंद शीतल हवाओं का झोंका चला,
सब लताएँ हरी लहलहाने लगी।।
आज देखा मिलन भक्त भगवान का,
सूर्य की रश्मियाँ भी नवल हो गयीं।
राह में फूल नित जो सजाती रही, साधना आज उसकी सफल हो गयी।।

प्रेम से है कुटी में बिठाया उन्हें,
और श्रद्धा सुमन से चरण हैं धुले।
बेर चखकर खिलाये मधुर राम को,
पर लखन प्रेम में तो नही हैं घुले।।
खा गए बेर जूठे बड़े प्रेम से,
पुण्य पावन कथा ये अटल हो गयी।
राह में फूल नित जो सजाती रही, साधना आज उसकी सफल हो गयी।।

अभिनव मिश्र अदम्य

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