भीष्म पितामह कौन ? (मनहरण घनाक्षरी)
अष्ट वसु एक बार ,देवलोक आये पार ,
वशिष्ठ आश्रम पास निवास कर लिया ।
घूम पर्वत शिखर ,पहुँचे हैं स्थान पर ,
द्यौ की पत्नी बोली तब,नंदनी मोह लिया।
पत्नी हित प्रेम वश,नंदनी को लाये कस,
चोरी चोरी छिपा कर , घर प्रस्थान किया ।
वशिष्ठ देखा ध्यान से ,क्रोधित वसु कर्म से ,
धरालोक जन्म पाओ,शाप वसु को दिया।
शाप सुनते बेचैन,गंगा शरण ली चैन ,
शीघ्र मुक्ति वरदान ,माता गंगा ने दिया ।
प्रकट हुई स्त्री वेष,सुन्दर रूप अशेष ,
शान्तनु को पति चुन ,शर्त में बांध लिया ।
क्रमशः सात सुत को,जन्मते सौपा जल को
अष्टम में द्यौ का जन्म ,शान्तनु टोक दिया।
टूटता वचन देख ,गंगा बोली खत्म लेख
इतना ही संबंध था ,सुत तुझको दिया।
गंगापुत्र देवव्रत,जीवन किया सुक्रत
पिता हित ब्रह्मचार्य,संकल्प ठान लिया ।
मात- पिता सेवा मान,आचरण था महान
इच्छा मृत्यु वरदान, स्वयं पिता ने दिया।
परशुराम गुरु कर ,युद्ध कला सीख कर,
सर्वश्रेष्ठ योद्धा भीष्म ,कृष्ण सम्मान दिया ।
भीष्म पितामह आज , कुरुवंशियों का ताज,
महाभारत युद्ध से, नाम अमर किया ।
राजेश कौरव सुमित्र
गाड़रवारा नरसिंहपुर मध्य प्रदेश