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28 Jan 2021 · 1 min read

नहीं वह मर्द होता है

आधार छंद-विधाता
1222 1222 1222 1222
उठाये हाथ नारी पर, नहीं वह मर्द होता है।
निरा वह तुक्ष प्राणी है, नहीं हमदर्द होता है।

अहंकारी बड़ा पापी,करे अपमान पग-पग में।
भरा उर हीन भावों से,मगर है शान रग-रग में।
नियत गंदी रखे हरदम,हृदय भी गर्द होता है।
उठाये हाथ नारी पर, नहीं वह मर्द होता है।

कमाई छीन लेता है,लगाता हर दिवस पहरा।
करे वह बात लातों से, बदन पर जख्म दे गहरा।
नजर है क्रोध में डूबी,हमेशा फर्द होता है।
उठाये हाथ नारी पर, नहीं वह मर्द होता है।

करे जो जुल्म नारी पर, खिलौनों की तरह खेले।
बड़ा हवसी दरिंदा है,धधकती आग में ठेले।
मनुज वह जानवर केवल,रुधिर भी जर्द होता है।
उठाये हाथ नारी पर, नहीं वह मर्द होता है।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

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