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4 Nov 2020 · 3 min read

कबीर दास जी के दोहे

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब।

हिन्दी अर्थ :कबीर दास जी समय के बारे में कहते हैं कि जो कल करना है उसे आज करो और जो आज करना है उसे अभी करो, कुछ ही समय में जब जीवन ख़त्म हो जायेगा फिर तुम कुछ नहीं कर पाओगे.

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।
पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट।

हिन्दी अर्थ :कबीर दास जी कहते हैं कि अभी राम नाम की लूट मची है, अभी तुम भगवान का जितना नाम लेना चाहो ले लो नहीं तो फिर समय निकल जाने पर अर्थात मर जाने के बाद पछताओगे कि मैंने तब भगवान राम की पूजा क्यों नहीं की।

माँगन मरण समान है, मति माँगो कोई भीख।
माँगन ते मारना भला, यह सतगुरु की सीख।

हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि कुछ भी माँगना मरने के बराबर है इसलिए किसी से भी भीख मत मांगो. सतगुरु जी कहते हैं कि मांगने से मर जाना बेहतर है अर्थात अपने पुरुषार्थ से स्वयं चीजों को प्राप्त करो, उसे किसी से मांगो मत।

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि कभी भी एक छोटे से तिनके की निंदा मत करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है. अगर कभी वह तिनका उड़कर आपके आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि मन में धीरज रखने से ही सब कुछ होता है. अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से भी सींचने लगे फिर भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा।

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

हिन्दी अर्थ :कबीर दास जी कहते हैं कि कोई व्यक्ति लम्बे समय तक हाथ में लेकर मोती की माला तो घुमाता है पर उसके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन में जो है वह हलचल शांत नहीं होती. कबीर जी ऐसे व्यक्ति को सलाह देते है कि हाथ की इस माला को फेरना छोड़ कर मन के मोतियों को बदलने की सोचे।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि किसी भी सज्जन या साधु की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को हमें समझना चाहिए. हमेशा तलवार का मूल्य होता है न कि उसकी मयान का – उसे ढकने वाले खोल का।

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त।
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

हिन्दी अर्थ :कबीर दास जी कहते हैं कि यह मनुष्य का स्वभाव है कि जब वह दूसरों के दोषों को देखता है तो इन्हें देखकर हंसता है, तब उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनका न आदि है न अंत।

दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार
तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।

हिन्दी अर्थ : कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार में व्यक्ति को मनुष्य का जन्म मुश्किल से मिलता है. यह मानव शरीर उसी तरह है जैसे वृक्ष से पत्ता झड़ जाए तो दोबारा डाल पर नहीं लगता!

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