Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
11 Oct 2020 · 1 min read

शाम

शाम हो गयी बालकाॅनी से बाहर झांकर देखा।धूप अभी भी है पर जहां छांव है वहां मौसम उतना ऊष्म नहीं जितनी सफेद धूप को निहारने से लगता है।सामने दरीचे पर पंछी दाना चुगने के बाद अपनी चोंच को पानी से भरे मर्तवान में भिगो रहा है।इस पंछी को अक्सर इसी खिड़की पर देखा है उसी तरह जैसे सामने वाले घर में झाड़ू करकट निकालती युवती को या रेंलिंग पर सिगरेट पीते युवक को।पंछी कभी कबार अपने गोल कंठ से मधुर गीत गुनगुना देता है यद्यपि वो लगातार चहकता है पर मुझे तो किसी गीत के बोल लगते हैं जैसे वो अपनी प्रेयसी पर आसक्त हो और उसी पर कोई कसीदा कह रहा हो।दूसरा पंछी भी उसके मीठे बोल को सुनकर करीब आ जाता है तभी कुछ ही पलों में उनकी चोंच से चोंच मिल जाती है।सुबह या शाम ये पंछी आशियाना बनाने की फ़िराक में रहते हैं। रोज़ इनका घर टूटता है पर बिना किसी आक्रोश
के ये पुनः यहां लौट आते हैं…
मनोज शर्मा

Loading...