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24 Sep 2020 · 1 min read

Me!

शीशे में स्वयं के अक्ष को देखते हुए मैंने बालों के गुच्छें सफेद बालों की एक छिपी क्यारी को पाया।मैं स्वयं को शीशे के करीब ले जाता गया और लगा इन दिनों मैं स्वयं को पहले से कहीं अधिक शीशे में देखता हूं और शायद गहराई से भी।मेरे पिचके गाल अब फूल गये है और पेट भी पहले से अधिक बढ़ गया है आंखों में लालिमा देख मेरे रोंये जाग गये पर इसमें ख़ास क्या ये तो इन दिनों जिसे देखों उसका यही हाल है।बालकाॅनी से आसमां की ओर देखा सफेद कबूतरों की कतार दाये से बायें दौड़ रही है।मेहता जी चश्में को साफ करते मुस्कुरा दिये जैसे मेरी रंगत में कुछ ख़ास बदलाव आ चुका हो।किताब के पन्नों को अंगुली से उलटते पलटते फिर शीशे की ओर लौट गया पेट पर हाथ फेरते हुए स्वयं को आश्वस्त किया सब ठीक है और मेहता की तोंद तो मुझसे कहीं फैली है टायर की तरह।इन दिनों दिनचर्या बदलती जा रही है कुर्सी पर कम्प्यूटर को निहारते फिर किताब आदि का अध्ययन करते रहना और हां टीवी देखना आदि आदि।शाम छत पर बीतती है पर उस समय सब सहज सा प्रतीत होता है यानि शीशे में सब भ्रम है और बालों में सफेदी तो अनुभव की निशानी है।शीशे में फिर आतुरता से स्वयं को देखा बड़ी मोहिनी तस्वीर है मेरी चश्मा चढ़ाकर देखा तो हंसी ही छूट गयी •••
मनोज शर्मा

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