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30 Jul 2020 · 1 min read

विकास

“अजी! नाम क्या है तुम्हारा ?”

“साब, मंगरू नाम है मेरा।”

“ओह हो ! ये कैसा नाम है ? एकदम अनपढ़ गंवार जैसा।”

“साब ! गंवार लोग ही तो हैं हम।”

“किसने कहा कि गंवार हो ? अरे ! पहले अंगूठा टीपते थे और अब….? दस्तखत करने लगे। इतना विकास हो गया लेकिन नाम वही गंवारों वाला।”

“क्या करें साब, माई-बाप ने यही रखा तो और सब बुलाते भी तो यही हैं।”

“अच्छा, ऊ सब छोड़ो। नाम ही बदल देते हैं तुम्हारा…हाँ। आज से तुम्हारा नाम मंगतराम रहा….समझे। अब विकास हुआ है तो विकास दिखना भी तो चाहिए ना ?”

“ऊ सब तो ठीक है साब। लेकिन काम भी रोज मिल जाता तो…..।”

©️ रानी सिंह

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