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7 Jul 2020 · 1 min read

खुशनसीबी हमारी तो देखो

ग़ज़ल
(वज़्न – 2122 1221 22. 2122 1221 22)

खुशनसीबी हमारी तो देखो हम बुजुर्गों से क्या ले रहे हैं।
उनका साया है सर पर हमारे ठंडी ठंडी हवा ले रहे हैं।।

जिसने नाज़ो से हमको है पाला , और खिलाया है मुँह का निवाला।
उसके क़दमो में जन्नत हमारी, पाँव माँ के दबा ले रहे है।।

खाली मां की दुआएं न जातीं , वो असर अपना हरदम दिखातीं।
हर बला सर से अब तो टलेगी हम तो मां की दुआ ले रहे हैं।।

माँ को नाराज़ हरगिज़ न करना बद्दुआओं से तुम उसकी डरना।
बस इसी वास्ते हम तो अपनी रूठी माँ को मना ले रहे है।।

माँ ने माथे को चूमा है हँसकर, रख दिया हाथ भी अपना सर पर।
था ये बिगड़ा मुक़द्दर हमारा, हम मुक़द्दर बना ले रहे हैं।।

क़द था छोटा नज़र जब न आया, अपने काँधों पे हमको बिठाया।
इसलिए अपने वालिद को अब हम अपने सर पर बिठा ले रहे हैं

अपने माँ-बाप की करके खिदमत, नाम अपने लिखा लेगें जन्नत।
खर्च होगा नही अब खजाना, नेकियां हम कमा ले रहे हैं।।

राज़ी मां बाप हैं गर “अनीस” अब, फिर तो राज़ी भी हो जाएगा रब।
अब रज़ा लेके माँ-बाप की हम, अपने रब की रज़ा ले रहे हैं।।
– अनीस शाह “अनीस” (म. प्र.)
Mo 8319681285

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