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19 Jun 2020 · 1 min read

स्वप्न न बेचे...

रोटी की खातिर सबकुछ, बेचा लेकिन, स्वप्न न बेचे।

हमनें चौराहों पर रखकर काले जामुन केले बेचे।
चीकू सेब संतरे लीची नीबू आम करेले बेचे।।

सब्जी बेची लेकिन अपने मन में उठते प्रश्न न बेचे।।

बच्चों की खातिर अपना मरना बेचा जीना बेचा।
मजबूरी के हालातों में निशदिन खून पसीना बेचा।

हँसी लबों की बेची लेकिन त्यौहारों के जश्न न बेचे।

बीमारी के कारण धरती बेची अपने घर को बेचा।
अपनी नींदें बेचीं हमनें हिम्मत बेची डर को बेचा।

अपने तन को बेच दिया पर मन के राधे कृष्न न बेचे।।

प्रदीप कुमार

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