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17 May 2020 · 1 min read

अनहोनी

अनहोनी के सामने ,
होना पड़ता मौन ।

इस पर वश चलता नहीं ,
इसको रोके कौन ।।

बस इसको स्वीकार कर ,
करना होता काम ।

नया सबेरा आएगा ,
बीत जायेगी शाम ।।

विधि विधान को जानकर ,
करते जो नित काज ।
उनको ही सहयोग नित ,
देता राज समाज ।।

होती है कुसमय सदा,
धीरज की पहचान ।

विपदा मन धीरज धरे ,
है वह चतुर सुजान ।।

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