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6 May 2020 · 1 min read

फटी पुरानी चादर ओढ़े...

फटी पुरानी चादर ओढे़,कच्चे घर में,
टूटे फूटे सपनों की जिद जारी है !

युगों बाद फुरसत की छत पर,
चिंतन और मनन के छण हैं !
युगों बाद टकराने को फिर,
भीष्म और केशव के प्रण हैं !!

युगों बाद फिर आज शिखण्डी ही रण में,
गंगा सुत के बल पौरुष पर भारी है !!

निर्धनता ले जर्जर कश्ती,
गहरे सागर में भटक रही!
दुर्भाग्यों के पाषाणों पर,
अपने मस्तक को पटक रही!!

एक तरफ है भूख मौत का रूप लिये,
एक तरफ कोरोना की बीमारी है !!

चिंता के सागर में डूबे,
सोच रहे हैं नैना गीले।
हाथ कुँवारी बिटिया के अब,
जाने कैसे होंगे पीले!!

मन में पलने वाले सब अरमानों का,
खून बहाने की फिर से तैयारी है।।

प्रदीप कुमार

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