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1 Mar 2020 · 1 min read

कविता

उलझा दिया उन्होंने मोहब्बत में इस तरह।
दामन किसी गुलाब का काँटों में जिस तरह।
इस कश्मकश में हूँ मैं कहूँ या कि ना कहूँ,
चावल-सा है वो काँटा निकालूँ तो किस तरह?
✍?’रोली’ शुक्ला

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