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22 Feb 2020 · 1 min read

" यह घूँघट , नटखट , हठी पिया " !!

यह घूंघट , नटखट , हठी पिया !!

मन भावे ना , पर करे चुहल ,
नज़रों को बांधे है प्रतिपल !
मैं छुई मुई बनकर बैठूं ,
जब तुमने दामन थाम लिया !!

तिरछी नज़रों की बैचेनी ,
पर फैलाये , करे अनसुनी !
जब चंचल मन होता बागी ,
कैसे उस पल को जिए हिया !!

चेहरे के भाव पढ़े कोई ,
घूंघट की सीध तके कोई !
फिर चाहे पहरे बैठाना ,
अधरों को मैंने तभी सिया !!

दुनिया ठहरी ठहरी लगती ,
घूंघट ऊपर प्रहरी लगती !
जीने दो हमको भी खुलकर ,
जब पल पल तेरे नाम जिया !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

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