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29 Jan 2020 · 1 min read

हाथ जाते हुए वो हिलाते रहे

जब तलक वो नज़र मुझको आते रहे।
रोया दिल हम मगर मुस्कुराते रहे।।
चाहकर भी न हम रोक पाये उसे।
लब खुले ही नहीं थरथराते रहे।।

इस कदर मेरी नज़रों से ओझल हुए।
हाथ जाते हुए वो हिलाते रहे।।

तेरी यादों से बहला न पाए जो दिल।
तुमपे लिखके तुम्हें गुनगुनाते रहे।।

दिन तो गुजरा मेरा रोते रोते मगर
रात ख़्वावों में वो मुस्कुराते रहे।।

हू ब हू अक्स तेरा उभरता गया।
रेत पर उंगलियाँ हम घुमाते रहे।।

इस तरफ हों कभी उनकी नज़रें करम ।
आस का एक दीपक जलाते रहे।।

कोई उपचार गम का न वो कर सके।
हाल सुनते रहे हम सुनाते रहे।।

दिल में मातम सा छाया जुदा जो हुए।
और खुदको चिता सा जलाते रहे।।

श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव साईंखेड़ा

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