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1 Nov 2019 · 1 min read

मुक्तक

फूल की खुशबू, चिल्का की हंसी ले के जो हम जिये
आप को सदियां लगेंगी हमें भूल जाने में

जिन्हें न हंसने का मालूम हो सलीका, न हंसाने का
ऎसे लोग भी इस महफिल में हैं, मुझे आजमाने में

दुख का कारखाना क्यूं न दिखे इस जहां की सारी बस्ती
लोग – बाग लगे हैं बस एक दूसरे को घीच कर गिराने में ।
… सिद्धार्थ

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