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3 Aug 2019 · 1 min read

मुक्तक

हादसे कुछ इस क़दर हो गये हैं।
हम ग़में-हालात से रो गये हैं।
ज़िन्दग़ी बिख़री है रेत की तरह-
हम राहे-बेख़ुदी में खो गये हैं।

मुक्तककार- #मिथिलेश_राय

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