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23 Jul 2019 · 1 min read

कव्वाली :- मेरे मुहम्मद की नजर

कव्वाली :- मेरे मुहम्मद की नज़र

अनुज तिवारी “इंदवार”

ये नज़र है मुहम्मद साब की !

ये नज़र है मेरे आफ़ताब की !

जो मक्का में है मदीना में है ;

वो हाजी में है नाजमीना में है !

ये पाकी है ये सच्ची है

मेरे मुहम्मद की नज़र , मेरे मुहम्मद की नज़र । -5

मेरे मुहम्मद की नज़र ,पाकी नज़र पाकी नज़र । -3

मेरे मुहम्मद की नज़र , मेरे मुहम्मद की नज़र ! -3

बन्दे मैं इस दरबार में ..बन्दे मैं इस दरबार में …

बन्दे मैं इस दरबार में तेरी इनायत क्या करूँ ! -5

मेरे मुहम्मद की नज़र मुझको मुकम्मल हो गई ।।-3

देख जब रहमत मिली मुझको मुहम्मद साब की ।

रात काली कट गई , खुशहाल महफिल हो गई ।।

मेरे मुहम्मद की नज़र , मेरे मुहम्मद की नज़र ! -3

मेरे मुहम्मद की नज़र ,पाकी नज़र पाकी नज़र ! -3

मेरे मुहम्मद की नज़र, मेरे मुहम्मद की नज़र -3

इस भरे दरबार से , कोई न खाली जाएगा …..

कोई न खाली जाएगा कोई न खाली जाएगा ! 3

इस भरे दरबार में हैं आप भी और आप भी हैं ।-5

ख्वाब भी हैं , रंज , उल्फ़त , आश भी है ,राज़ भी हैं ।।-3

जो यहां खालिस हुए सब ख़ाक खूदी हो गए ,

है ख़बर सब कुछ जिन्हें मेरे मुहम्मद साब ही हैं ।।

मेरे मुहम्मद की नज़र , मेरे मुहम्मद की नज़र -3

मेरे मुहम्मद की नज़र ,पाकी नज़र पाकी नज़र -3

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