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16 May 2019 · 1 min read

जिंदगी

रूबरू ज़िंदगी ,घूमती रही ।
रूह की तिश्नगी, ढूँढती रही ।
रहा सफ़र दर्या का, दर्या तक,
मौज साहिल को ,चूमती रही ।
…. विवेक दुबे”निश्चल”@…

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