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12 May 2019 · 3 min read

एक अहसास:- मां ना होने का।

रजनी काकी सुबह होते ही पूरे गांव के एक चक्कर तो लगा ही लेती थी। कभी इसके घर कभी उसके घर, अपने घर में अकेली जो थी। मरद चार साल पहले चल बसा, दारू की ऐसी लत थी की एक शाम ना पिए तो आंधी तूफान ला दे और इसी में एक बार तबीयत बिगड़ी और पता चला कि किडनी फेल है। अब गरीब आदमी दूसरी किडनी कहां से मांगता तो मरना ही बेहतर समझा।
पर रजनी काकी को एक सिकायत थी उससे मुए ने एक चिराग तक नहीं दिया गोद में, कभी कभी गुस्सा होती है तो कोसने लगती है- जिनगी खराब कर दी रेे एक लाल तक न दे पाया मुुए ने अब बुढ़ापा किसके सहारे कटूं। पर ये बोली सिर्फ गुस्से तक, बाकी समय ये बच्चे ना होने के फायदे गिनाती रहती है। अरे आज झूलनी के बेटवा मारत रहे, खूब घसीट घसीट के, कल फुलेश्री के पुतोह खाना ना दिया, और ऐसे ही पूरे गांव के वो कहानी जिसमे सिर्फ मां बेटे का झगड़ा हो चुनती ओर दोपहर को बैठ के सबको बताती और शान से कहती – ठीक है जे हमर केहू लईकन ना है।कम से कम कोई मरत पिटत तो ना है न।ऐसन बेटुआ होय से बढ़िया है कोई ना रहे। हमर मरद भी कहते रहे जे ठीके है रजनी अपन कोई ना है ना त अगर मार पीट करता,लड़ाई झगड़ा करता तो ठेहा ( गांव में जब बिना मशीन के चारा काटते हैं तो जिसपर रखकर काटते हैं वो लकड़ी का टुकड़ा) पर रख के काट देते। और अपने को खुशनसीब मानती।
एक दिन अकेले बैठी थी तो मैंने पूछ लिया — काकी जो ई सब तुम रोज बोलती हो ,कि ठीक है! कौनो ना है हमर – मन से बोलती हो या ऐसे ही सिर्फ मन बहलाने के लिए? मैंने उनकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था। एक बार तो वो गुस्सा हो गई और बोली – तोरा का मतलब है हम कैसे बोलते हैं। काकी बताओ न ,कहके हमने ऐसा मुंह बनाया की वो अपने आप को रोक नहीं पाई और कहने लगी ~ ना बाबू ऐसा नहीं है कि हमरा दुख नहीं है। अरे बेटा चाहे बेटी ,है तब न चाहे प्यार करत है चाहे मारता है। खाना देत है चाहे भूखे रखत है। अब देख हमरा इतना बढ़ घर है किस काम का ना कोई हंसे वाला, ना कोई बोले वाला, अकेले काटता है, इसलिए सुबह से ही घूमती रहती हूं।
अरे बेटा बेटी त औरत के श्रृंगार है, अभागीन ही हूं न इसलिए तो ई श्रृंगार हमरा के ना मिला। अब बात करने के लिए कोई तो चाही, अब घर में तो केहू ना है तो कहानियां बनाती हूं और गांव के औरतों को बैठा के अपना अकेलापन कम करने की कोशिश करती हूं।
मैं सुनता रहा चुपचाप एक टक उनको देखते हुए, और वो बोलती रही बिना रुके। शायद कोई सुनने वाला नहीं था जो वो बोलना चाहती थी इसलिए वो, वो बोलने लगी थी जो लोग सुनना चाहते थे। पर आज मै था सुनने वाला इसलिए पूरी जिंदगी के गम निकाल देना चाहती थी। बिना रुके फिर कोई मिले ना मिले……….
……राणा……
12.05.2019

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