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12 Mar 2019 · 2 min read

छेड़खानी

पूरा एक महीना अस्पताल में बिताने के बाद आज सौभाग्य को वहाँ से छुट्टी दे दी गयी। अपने घर आने के लिए वह बस में जा बैठा। जाड़े का मौसम था और उसने अपने पूरे बदन को एक गर्म कंबल से ढँक रखा था। अभी भी घाव के जख्म पूरी तरह से नहीं भरे थे जिसका दर्द वह अब तक महसूस कर रहा था।

बस खुलने से ठीक थोड़ी देर पूर्व एक मॉडर्न युवती उसमें सवार हुयी। उसने आधुनिक वस्त्र पहन रखे थे, कंधे में पर्स लटक रहा था, बाल खुले थे और आंखों पर काला चश्मा चढ़ा रखा था। निश्चित समय पर गाड़ी खुल गयी और अनुमान के मुताबिक जर्जर सड़क पर हिचकोले खाते हुये चलने लगी। सौभाग्य ने अपनी पीड़ा कम करने के लिए अपनी पूरी नजर उस युवती पर टिका दी। सौभाग्य अवाक रह गया – वह मॉडर्न सी दिखने वाली युवती किसी यात्री के पॉकेट से पर्स उड़ा रही थी। उस युवती ने भी भांप लिया कि सौभाग्य ने उसे ऐसा करते देख लिया है।

अचानक से युवती सौभाग्य के पास आयी और उसे धकियाते हुये बुरा-भला कहने लगी। क्या तुम्हारे घर में माँ-बहन नहीं है जो मेरे उभारों के साथ छेड़छाड़ कर रहे हो…..? सौभाग्य के आसपास तुरंत भीड़ इकट्ठी हो गई। फिर शुरू हुआ लात-घूसों का दौड़……। बुरी तरह पीटने के बाद उसे उठाकर बस से नीचे फेंक दिया गया और बस आगे बढ़ती चली गयी……।

युवती खुश थी कि आज उसका भांडा फूटने से बच गया। सभी यात्री खुश थे कि अकेली बेसहारा लड़की को छेड़ने वाले एक मनचले को आज उन्होंने अच्छा सबक सिखाया। किन्तु किसी को इतनी भी फुर्सत नहीं थी कि जाकर सौभाग्य को सहारा दे। सौभाग्य एक अजीब सी पीड़ा से भर उठा। उसने अपनी दोनों बाँह के पास काफी तेज दर्द महसूस किया। वह जिसने एक माह पूर्व एक गंभीर दुर्घटना का शिकार होते हुए अपने दोनों हाथ गंवा दिये – किसी के साथ छेड़खानी कर सकता है क्या…..? परंतु किसे फुर्सत थी कि इन जलते प्रश्नों का उत्तर खोज सके। आपके पास इसका उत्तर है क्या……..?

अमिताभ कुमार “अकेला”
जलालपुर, मोहनपुर, समस्तीपुर

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