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24 Oct 2016 02:15 PM

यह घनाक्षरी छंद स्वरचित मेरी काव्यकृति ” राजयोगमहागीता ” से अध्याय २ का छंद संख्या १७;है , जिसमे हमने बताया है क़ि जब साधक अपने स्वरूप का साक्षात्कार कर लेता है , तब उसके लिए सब कुछ एक हो जाता है , ज्ञान, ज्ञाता और ज्ञेय में कोई अन्तर प्रतीत नहीं होता ।
—— जितेन्द्र कमल आनंद

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