यह हमारी काव्यकृति ” राजयोग महागीता ” अध्याय २ से छंद संख्या १६ स्वरचित है , जिसमें यह बताया गया है कि ध्यान योग के द्वारा आत्मा – परमात्मा स्वयं के ही मन मंदिर में विद्यमान अनुभव होते हैं , तो अपना पराया , मेरा तेरा सभी भेद मिट जाते हैं ।
—— जितेंद्रकमलआनंद
यह हमारी काव्यकृति ” राजयोग महागीता ” अध्याय २ से छंद संख्या १६ स्वरचित है , जिसमें यह बताया गया है कि ध्यान योग के द्वारा आत्मा – परमात्मा स्वयं के ही मन मंदिर में विद्यमान अनुभव होते हैं , तो अपना पराया , मेरा तेरा सभी भेद मिट जाते हैं ।
—— जितेंद्रकमलआनंद