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31 Jul 2016 11:16 PM

सत्य विशाल है भाव उसके कई रूप है सबकी पृथक व्याख्या है हमें उसके सभी पक्षों पर ध्यान देना चाहिए

स्त्री तब तक अबला ही रहेगी जब तक बेफिजूल का अबलापन का प्रचार करती रहेगी।
क्योंकि आज की तारीख में स्त्री पुरुष से काफी आगे निकल चुकी है । सभी अधिकार उसी के पास हैं । बस उसे थोडा रोने की आदत विरासत में मिली है ।
जब वह रोना धोना छोड़ कर इसी बात को बार बार हाईलाइट करना बन्द कर देगी । तब स्त्री पुरुष का अंतर काफी कम हो जायेगा । कायर स्त्री में से किसी दलेर स्त्री ने क्या कभी लिखने की कोशिश की आज की लड़की हुस्न और नंगेपन का कितना दुरूपयोग कर रही है । अपने ससुराल वालों की जिंदगी का मजाक बना रही है , अपने सपनो की होड़ में अपने बच्चों की जिंदगी का मजाक बना रही है । सभी पुरुष रचनाकार भी स्त्री टॉपिक को ही ज्यादा चुनते है क्योंकि उन्हें यही वाहवाही का स्त्रोत मिलता है ।
दैविक गुणों से भरपूर स्त्री का कर्ज न चुका पाऊँ
परन्तु बिगड़ी औरत से अपनी परछाई की भी सगी होने की उम्मीद नही ।
सभी बहनों से अनुरोध है अपने अबलापन के रोने को रोने में से कुछ समय निकालकर उन बिगड़ी बहनो को जागृत करने के लिए कुछ रचनाएँ करें।
आपका सच्चा राष्ट्र भाई
कृष्ण मलिक

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