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31 Jul 2016 · 1 min read

अफ़सोस

अफ़सोस जताने ये मन निकला
क्यों ज्ञान में खोखलापन निकला
हम करते रहे श्रेष्ठ सिद्ध स्वयं को
मन से न अहम का घुन निकला
परिवार बिना माने अबला
ये कैसा नया उसूल निकला
जो साथ रहे बनकर सहयोगी
उन पर फिर ये रोष ही निकला
नहीं स्वीकार किया नवसुमन को
ये मधुवन क्यों पतझड़ निकला
अनुभव फीका क्यों पड़ जाता
जब अंकुर कोई नया निकला
अभी देर बहूत है समझाने में
वास्तव समझा क्या क्या निकला
आओ कारें फिर मन्थन चिंतन
बोया आम तो क्यों बबूल निकला
आग्रह है मानसिकता बदलो
तिमिर मिटा नव मार्ग निकला
हे श्री मदन कृपा कर दो
आ पाये हमे मिलजुल चलना
आहत बहुत मैं दृष्टिकोण से
क्यों स्त्री को इतना तुच्छ समझा
हे विवेक शील विद्जन जानो
यहीं सृष्टि का उदभव निकला

क्षमा सहित
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Language: Hindi
11 Likes · 2 Comments · 344 Views
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