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27 Aug 2016 07:12 PM

क्षमा चाहूंगा
ग़ज़ल में जहां बहर की पाबन्दी जरुरी है वहीं शब्दों का अपनी सही जगह पर होना जरुरी है ज्यादा नहीं बेलूंगा बस एक पंक्ति का उदारण दे रहा हूं
जिन्दगी इक सांस पर है टिकी
ये बोल चाल की पंंक्ति नहीं है कोोई भी ऐसे नहीं बोलता
हां ऐसे बोल सकतेे हैं
“””जिन्दगी सांसों पे ही टिक गई
जी का जंजाल ये बनी अब तो””””
यूंं भी शेर में अब भी मज़ा नहीं आ रहा है

25 Jul 2016 09:21 AM

लाजवाब आदरनीय. शुभकामनाये

23 Jul 2016 04:27 PM

Very nice

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