साहित्यपीडिया एडिटर पैनल का आत्मिक आभार अभिनंदन।
क्या प्रतियोगिता का परिणाम घोषित हो गया है
इस प्रतियोगिता के परिणाम की घोषणा हो गयी है।
धन्यवाद
क्या प्रतियोगिता का परिणाम घोषित हो गया है
इस प्रतियोगिता के परिणाम की घोषणा हो गयी है।
धन्यवाद
जी शुक्रिया
प्रतियोगिता का परिणाम कब तक आएगा बताने का कष्ट करें
इस प्रतियोगिता के परिणाम की घोषणा हो गयी है।
धन्यवाद
इस प्रतियोगिता का रिजल्ट कब तक आएगा।
इस प्रतियोगिता के परिणाम की घोषणा हो गयी है।
धन्यवाद
!! अभिलाषा !!
शैशव आकुल है उड़ने को चेतक तुरंग की चाल।
आनंदमयी अठखेलियों संग ले कटार औ ढाल ।।
ओज शक्ति साहस समाया,लगे तुम्हें सपना सा।
हुंकार भरूं दुर्जन दुष्टों,संहार करूं वीरांगना सा।।
हाथी घोड़ा ढाल कटारी,अतिशय प्यारे लगते हैं।
वीरों की सुनकर गाथाएं,दम सामर्थ्य का भरते हैं।।
नहीं चाहिए गुड्डा-गुडियां,खेल खिलौने माटी को।
अबला नहीं कहलाएंगे,तोड़ दिया परिपाटी को।।
तुलजा वीर भवानी माता देना मुझको आशीष।
साकार कल्पना हो ,चरणों में गद्दारों के शीश।।
कोमल हृदय करें कल्पना, वीरांगना कहलाऊं।
कोमल कली समझ नहीं,लक्ष्मीबाई बन जाऊं।।
जीवन में नवकिरणें उल्लास सर्वत्र आलोकित हो।
चंदन कुंदन हो जाए मधुरिम एहसास सुभाषित हो।।
मत समझो कपोल कल्पना,स्वप्न सकल पूरित होंगे।।
तिमिर हटा आशाओं के,दीप सदा ज्योतित होंगे।।
अब पंख मिले मेरे सपनों को मैं आसमान उड़ जाऊं।
धवल सलोने स्वप्निल बादल,मैं धरती पर ले आऊं ।।
लाल बहादुर विवेकानंद ने कल्पना को आकार दिया।
कवि की ढाल बनी लेखनी,साधना को विस्तार दिया।।
( स्वरचित मौलिक)
नमिता गुप्ता
लखनऊ ( उत्तर प्रदेश)
बहुत सुंदर रचना
(१)
!! मैं हूं प्रेम दीवाना !!
हूं प्रेम दीवाना राधे तू वृषभानु दुलारी ।
तेरी चितवन मनमोहे, छवि लागे अति न्यारी।।
जब से तुझ से प्रीत हुई तू मेरे हृदय समाई ।
पल छिन तेरे दरश न होते, प्रीति की बंसी बजाई ।
देख तुझे यह व्याकुल नैना, हो जाते बलिहारी ।
मैं हूं प्रेम दीवाना राधे ,तू वृषभानु दुलारी ।।
प्रेम का पाठ पढ़ाने को मैं इस जग में हूं आया।
धर्म अधर्म का सबक सिखा ,गीता का ज्ञान कराया।
मैं ठहरा निर्मोही, कृपालु , भव बंधन त्रिपुरारी।
मैं हूं प्रेम दीवाना राधे ,तू वृषभानु दुलारी ।।
मैं ही जगत का पालनहार तू वैभव कल्याणी है ।
आस्था और विश्वास का संगम, प्राप्त करें वो ज्ञानी है ।।
तुझ बिन कोई मोल न मेरा,तू राधे कृष्णा प्यारी ।–
मैं हूं तेरा प्रेम दीवाना राधे, तू वृषभानु दुलारी।।
रोम रोम में बसे हो ,कान्हा फिर क्यों हाथ छुड़ाया।
बस गए मथुरा में जाकर, कितना ही मुझे रुलाया ।
तुझे ढूंढती रही मैं गोकुल, यमुना,कदम्ब की डारी ।
मैं हूं प्रेम दीवाना राधे तू बृजभान दुलारी ।।
धरा गगन से भी है ऊंचा,अमर प्रेम यह सच्चा।
प्रीति लगाई जिसने मुझसे,वह नायाब है अच्छा।।
मोह माया का विषम जाल है, छू न सके संसारी।
मैं हूं प्रेम दीवाना राधे , तू वृषभानु दुलारी।।
( स्वरचित मौलिक)
नमिता गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
बहुत खूब बहुत सुंदर रचना
महोदय! इसका परिणाम कब तक आएगा ? कृपया बताएं ।
नमस्कार आदरणीय,
अभी यह प्रतियोगिता समाप्त नहीं हुई है।
परिणाम की घोषणा प्रतियोगिता समाप्त होने के कुछ दिन बाद की जायेगी।
🙏
इस प्रतियोगिता के परिणाम की घोषणा हो गयी है।
धन्यवाद
कितनी कविता लिखनी है
कविता भेजनी है ya कहानियाँ bhi भेज सकते है
अरे वाह यही तो ब्रह्मा सार का सार है
आदरणीय गुप्ता जी ने तो मेरा मनोबल ही बड़ा दिया, क्यों न कभी इसी विषय पर संगोष्ठी रख ली जाए
सादर नमस्कार,
प्रतियोगिता के सभी विजेताओं को बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं।