You must be logged in to post comments.
उन मज़लूमों का दर्द समझते नहीं ये , जिनके आंसू पौछने पहुंच जाते हैं ये , अपने घड़ियाली आंसुओं की कीमत वसूलते हैं ये , फ़र्ज़ और ज़र्फ़ में फ़र्क करते खुदगर्ज़ हैं ये , एक चेहरे के पीछे कई चेहरे लगा लेते हैं ये , फरिश्तों के भेष में छुपे हुए शैतान हैं ये ।
श़ुक्रिया !
सत्य वचन
उन मज़लूमों का दर्द समझते नहीं ये ,
जिनके आंसू पौछने पहुंच जाते हैं ये , अपने घड़ियाली आंसुओं की कीमत वसूलते हैं ये ,
फ़र्ज़ और ज़र्फ़ में फ़र्क करते खुदगर्ज़ हैं ये ,
एक चेहरे के पीछे कई चेहरे लगा लेते हैं ये ,
फरिश्तों के भेष में छुपे हुए शैतान हैं ये ।
श़ुक्रिया !
सत्य वचन