Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
Comments (5)

You must be logged in to post comments.

Login Create Account

स्वयं के अक्स की पहचान, धूमिल सी हो जाती है,
विपत्तियों की गाठें जब, जीवन की डोर में लग जाती हैं। इस रचना की शुरुवात ही अंतर्मन को कुरेद देती है।सही मायने में कलम बिलकुल ऐसी ही हो जो समाज के दुःख दर्द खुशिया का प्रतिनिधत्व करती हो।आपकी रचना हमारे अंदर की संवेदना को दर्शाती है। जबरदस्त बहोत ही उम्दा साहित्यकृति🙏🙏🙏

9 Sep 2022 09:48 AM

बहुत बहुत आभार शेखर जी सचमुच आप सब इतना प्रोत्साहित करते हैं जिसकी कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी मैंने।इतनी हौसलाअफजाई के लिए हृदय से धन्यवाद 🙏🙏🙏

जी शुक्रिया 🙏🙏🙏

8 Sep 2022 08:53 PM

जीवन के हकीकत को आपने सही मायने में अपने कलम में उतार कर उसे बेहतरीन ढंग से आईना दिखाया है और अपने शब्दो की जादूगरी से फिर एकबार आपकी रचना ने मेरे दिल को छू लिया। बेहतरीन, लाजवाब, शानदार रचना👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻💐💐🙏🏻🙏🏻

9 Sep 2022 09:46 AM

बहुत बहुत आभार अनामिका जी आपके कमेंट्स नयी ऊर्जा का संचार कर देते हैं मुझमे हृदय से धन्यवाद 🙏🙏🙏

Loading...