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Comments (6)

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21 Jun 2022 04:17 PM

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर आभार

21 Jun 2022 03:03 PM

खुद ही तोड़ते हैं रिश्तों को लोग यहां
हम दो, हमारे दो का अब गाड़ी भी लोगों से चलता कहां।।
लजावाब जी

20 Jun 2022 10:15 PM

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर आभार

क्या सही कहा है आपने।बहोत ही उम्दा रचना.. अंतर्मुख कर गयी आपकी कलम

20 Jun 2022 09:46 AM

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर।सादर आभार।

अति उत्तम भावपूर्ण

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