धन्यवाद श्रीमान रजक जी, आपकी प्रसंशा से उत्साह वर्धन होता रहता है।
बहुत सुंदर जय कृष्ण उनियाल जी धन्यवाद आपका जी
सांसारिक वृत्तियों को को त्याग कर वैराग्य भाव से तप करना ही तपस्या नहीं है। अपितु गृहस्थाश्रम की समस्त जिम्मेदारियों को वहन करते हुए सत्यनिष्ठा एवं सत्कर्म युक्त आचार , विचार , एवं व्यवहार से परिपूर्ण मानवीय संवेदना भाव से जीवन निर्वाह भी एक
तपस्या है। लोकहित एवं सर्व कल्याणकारी भाव मनुष्य को अन्य से श्रेष्ठ बनाता है। आचार विचार एवं व्यवहार की शुचिता एक सामान्य मनुष्य को भी तपस्वी की श्रेणी में ला देती है। जीवन संघर्ष में पलायनवादी भाव न लाकर संकटों से सामना करने का धैर्य एवं समस्याओं का समाधान खोजने का संकल्पित भाव एवं आत्मविश्वास व्यक्ति विशेष के चारित्रिक गुणों को दर्शाता है , एवं उसे कर्मनिष्ठ योगी बनाता है।
धन्यवाद !
धन्यवाद श्रीमान! आपकी पारखी नजर का सदैव आभार।
बहुत सुंदर
श्याम सुन्दर जी सादर अभिवादन, आपने तपस्या में मेरे द्वारा व्यक्त व्यंग्य पर सटीक तथ्य परक तर्क संगत राय प्रस्तुत की है,मेरा आशय यह था कि आज की राजनीति में तपस्या कर कौन रहा है, फिर भी उसे महिमा मंडित किया गया, जबकि गृहस्थी हो या साधु-संत,या दैनिक जीवन के संघर्षों में लगा हुआ व्यक्ति अपने नित्य कर्म में एक तपस्वी की तरह जुटा हुआ है फिर भी वह इसे अपनी तपस्या नहीं कहता अपितु अपने भाग्य, किस्तम,या प्रारब्ध पर ही अपने को आंकता है! आपकी समालोचना से बहुत बल प्राप्त होता है, आप अपनी इस अनुकंपा को हर नवांगतुक के साथ बनाएं रखियेगा,सादर अभिवादन सहित।