बहुत खूब !
खुश़ाम़दीद !
मेरी पेशकश कुछ इस तरह आपकी नज़र है :
दिल बेचैन है खुद से जुदा होने को ,
रुह बेचैन है जिस्म़ से फ़ना होने को ,
अश्क़ों के सैलाब उसे अब ना रोक पाएंगे ,
टूटे दिल के तार अब ना जुड़ पाएंगे ,
टूटे दिल के साज़ से सुर नहीं रूदाद ही निकलेगी,
इज़हार- ए – उल्फ़त की सोग़वार आवाज़ ही निकलेगी ,
कफ़स -ए- क़ैद में बुलबुल उड़ने को बेचैन है ,
आज़ादी के खुले आसमान में परवाज़ को बेचैन है ,
ये एहसास के बादल उसे अब ना रोक पाएंगे ,
रिश्तो के ये बंधन टूट कर फिर ना जुड़ पाएंगे ,
उसका रहमान -ए- रहीम उसे पुकार रहा ,
सब्र का बांध टूट चुका वो उससे मिलने जा रहा ,
उसे रोकने की नाहक कोशिश न करो ,
उसे सुकूँ पाने दो चैन से उसे रुखसत करो।
धन्यवाद जी
बहुत खूब
गलतफहमियां काश ! दूर हो पातीं
न हम बिलखते रोते, न तुम जातीं,
प्यार भरपूर था हम मे औ तुम मे भी
हम समझे काश ! तुम भी समझ पाती।
माफी चाहता हूं एक बार फिर आपकी रचना से जुड गया। कमाल है !
धन्यवाद जी
बहुत खूब
??
❤️?
अति सुन्दर प्रस्तुति..!
धन्यवाद जी
बहुत सुंदर जी
धन्यवाद जी
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
धन्यवाद जी
दिल बेचैन है………. बहुत सुंदर जी
धन्यवाद जी