Comments (6)
29 Sep 2021 08:10 PM
हा हा हा…. चाॅंद तो मेरा भी है ! अब तो मुझे भी वहाॅं झूला लगाने का मन कर रहा…. इसीलिए चाॅंद को खुद के कब्जे में नहीं करें…. मेरा क्या सबका ही मन करेगा ! इसीलिए चाॅंद का दीदार करने के अलावे औरों की खुशियों के बारे में भी कुछ सोचें !! सबके लिए वहाॅं जाने का रास्ता खोल देंगे तो रचना खूबसूरत बन पड़ी है !! ??
पंकज कुमार कर्ण
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29 Sep 2021 08:45 PM
सबके लिए सूरज है ही।
समीक्षा के लिए धन्यवाद?
पहले तो यह बतादें कि चन्द्रमा का कोई हिस्सा हमेशा अँधेरे में नहीं रहता है। केवल पृथ्वीवासियों को ऐसा महसूस होता है जो वहाँ जाकर परख सकते हैं।
मैंने जो _चलो चाँद पर झुला डालें.. शीर्षक से काव्य रचना की तो उसमें निहित भावों को समझना जरूरी था।
जब किसी कविता में छिपे भाव का रसास्वादन नहीं कर सके तो फिर कविता पढ़ना ही बेकार है,
काव्य सृजन का यथार्थ की बातों से साहचर्य हो ही, ये कोई आवश्यक नहीं है,
कुछ काल्पनिक होती है, लेकिन उद्देश्यविहीन नहीं होनी चाहिए,
ये रचना लिखी गई थी सामाजिक रिश्तों और संस्कारों के बदलते परिवेश को लेकर जिसमें शादी-विवाह जैसी पुरानी मान्यताएं भी छिन्न-भिन्न हो रही है और प्रेम का अलौकिक स्वरूप अब गौण हो गया है। महानगरों में लोग लिव-इन-रिलेशनशिप पर ज्यादा जोर दे रहे हैं और इसी कारण सुशांत सिंह राजपूत को जान गंवाना पड़ा!
काल्पनिक बातें , कविता में निहीत भाव, अलंकार, अभिधा, लक्षणा और व्यंजना की भी स्पष्ट जानकारी नहीं हो और अनर्गल भाव अभिव्यक्त हो रहा हो तो काव्य रचना पढ़ने से क्या लाभ?
हो सकता है छंद मुक्त हो।