Comments (6)
28 Sep 2021 09:15 AM
अतिसुंदर संदेशपूर्ण प्रस्तुति !
धन्यवाद !
पंकज कुमार कर्ण
Author
28 Sep 2021 09:48 AM
आपका बहुत बहुत आभार,,?
28 Sep 2021 07:49 AM
अद्भुत……… बहुत सुंदर
पंकज कुमार कर्ण
Author
28 Sep 2021 09:48 AM
बहुत बहुत धन्यवाद,सर?
कविता का उद्देश्य सही है लेकिन कुछ शब्द विवाद को जन्म देने वाले हैं।
महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने छंद मुक्त विधा को हिन्दी काव्य में संस्थापित किया।समस्त प्रकार के अवांछनीय बंधनों को तोड़ने का श्रीगणेश सन १९३२ में तोड़ती पत्थर से हुआ था।
महान कवि सुमित्रानंदन पंत ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया।
बाबा नागार्जुन जी ने एक बार कहा था-‘छंदमुक्त या मुक्तछंदीय अच्छी कविता भी वही लिख सकता है, जिसे छन्दोबद्ध लिखने का अभ्यास हो।
अतः हिन्दी काव्य में जो स्थापित काव्य विधा है उसे इस तरह उपहास नहीं उड़ाया जाना चाहिए भले ही खुले मंच पर तर्कसंगत समीक्षा हो सकती है। ऊलजलूल लिखना एक अलग बात है जिसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
कहीं कोई विवाद की बात नहीं है।
पंत प्रकृति वादी कवि थे।
निराला और पंत छायावाद के प्रवर्तक भी थे।
इनकी हर रचनाएं हमेशा संदेशपूर्ण होती थी। निराला की तोड़ती पत्थर हो या भिक्षुक
समाज में एक अलग छाप छोड़ने वाली कविता है।
नागार्जुन की ज्यादातर रचनाएं अनुवादित होती थी,। क्यों की वो कई भाषाओं के जानकर थे।
इसी कारण उनकी भी रचना में छंद से मुक्ति देखने को मिलती थी।
और इन्होंने इस संदर्भ में छंद से मुक्ति की बात कही।
ना की इनलोगों ने कहा कि हर रचना छंद मुक्ति को हथियार बना कुछ भी लिखते जाओ।
उनका कहना यही था कि कविता कभी कभी छंदमुक्त भी हो सकती है।
ना की हमेशा छंदमुक्त ही हो सकती है।
मेरी उपर्युक्त कविता सिर्फ छंद के बारे में ही नही लिखी गई है।
इसी कारण कोई विवाद की बात नही है।
वैसे आपकी सुंदर समीक्षा के लिए धन्यवाद।?