महोदय सत्य को स्थापित करना नितान्त आवश्यक होता है अत: एक वस्तुनिष्ठ और सत्यनिष्ठ आंकलन का प्रतिपादन अपरिहार्य रूप से होना ही चाहिए जिससे समाज में भ्रान्ति,कलह और परस्पर वैमनस्य समाप्त हो सके ।
बिल्कुल, भ्रम का जाल फैला हुआ है
सत्य कथानक
धन्यवाद Prakash Chandra ji
अतिसुंदर विवेचना युक्त प्रस्तुति !
धन्यवाद !
thanks
Gale se neeche to poori Ramayan hi nahi utarti Bhai.
what a joke sir ji+
सटीक लेख, बहुत अच्छा लगा, आपको सादर अभिवादन 🙏🙏🎉
सुरेश कुमार चतुर्वेदी जी, धन्यवाद।
ज्ञानवर्धक लेख। इतिहास में विद्वेष फैलाने वाली रचनाओं से इसी तरह पर्दा उठना चाहिए। मनुस्मृति की भी टीका प्रकाशित होना चाहिए ताकि किन्हीं को मनुवादी उपाधि से विभूषित करने और इसे संकीर्ण मानसिकता वाला बताने का अवसर न प्राप्त हो सके।
श्री रमण ‘श्रीपद्’ जी, धन्यवाद।
अप्रतिम लेख
वन्दे मातरम।
Ishwardayal Goswami जी, धन्यवाद।
वर्तमान को देखकर अतीत को समझ लीजिए। शंबूक तो आज भी मारे जा रहे हैं।
आपकी पीड़ा मैं समझ सकता हूँ। हमारा लक्ष्य समृद्ध हिन्दू राष्ट्र बनाना है। वन्दे मातरम।
आपने अपने इस लेख के माध्यम से समाज में जातिवाद को मिटाने का जो प्रयास किया है वह अत्यंत सराहनीय है।।
धन्यवाद
आपकी बातों से हम पूर्ण सहमत हैं क्योंकि संस्कृत के श्रेष्ठ नाटककार भवभूति जी द्वारा लिखित नाटक “उत्तररामचरितम” के ‘द्वितीय अंक’ में शम्बूक को जीवंत रूप में दिखाया गया है। रामचन्द्र जी ने शम्बूक की हत्या नही की थी बल्कि रामायण में शम्बूक , श्री राम के सहयोगी पात्र थे।
सुनील कुमार जी, धन्यवाद।
मिथक में सत्य क्या और झूठ क्या!