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Comments (6)

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24 Apr 2021 09:54 PM

हां कटु सत्य है!हम स्वयं ही इसके नियंता भी हैं और भूक्तभोगी भी।सादर नमस्कार।

24 Apr 2021 09:52 PM

धन्यवाद रजक जी, आपने तो वह समय स्वंय जिया होगा ! तो उसका अहसास कर सकते हैं।

24 Apr 2021 09:50 PM

धन्यवाद श्रीमान चतुर्वेदी जी सादर प्रणाम,आप जैसे पारखी ही इस तरह के समाज की झलक महसूस कर सकते हैं।

सबके जिम्मेदार हम खुद है, हमको ही चाहिए सूट-बूट ,गाड़ी और हवेलिया और अंग्रेजी मिजाज । जब कुछ आता है तो कुछ जाता है।
धन और भौतिकता के बदले हमने अपनापन और सकून का सौदा किया है ।

24 Apr 2021 04:45 PM

बहुत सुंदर प्रस्तुति धन्यवाद आपका जी

सही कहा आपने, रचनाओं में ही पता चलेगा कि पहले कैंसा समाज था। आपको सादर नमस्कार।

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