दरअसल इस लोकतंत्र में हम जी रहे हैं , वह लोकतंत्र के छद्म में पूंजीवाद है । देश विकास के नाम पर पूंजीवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। केवल बड़े शहर एवं कस्बों में सुविधाओं का विकास किया जाता है जबकि दूरदराज ग्रामीण क्षेत्रों में मौलिक सुविधाओं पानी , बिजली स्वास्थ्य , चिकित्सा , आवास , सड़क एवं परिवहन सुविधाओं की कमी है। बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा के लिए पाठशालाओं की कमी है। जो भी पाठशालायें हैं वे नियमित रूप से लगती नहीं है और उनमें शिक्षकों की कमी है। पाठशाला भवन जर्जर स्थिति में है , और उनमें शिक्षा साधनों का अभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के नाम पर जो भी योजनाएं चलाई जाती हैं उनमें रसूख वालों का वर्चस्व रहता है। तथा विकास के नाम पर शासकीय धन का दुरुपयोग नेताओं एवं उनके दलालों द्वारा अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए किया जाता है। गरीब किसानों एवं मजदूरों की दशा बद से बदतर शोचनीय होती जा रही है । अवसाद ग्रस्त किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो रहा है। चुनाव घोषणा पत्रों में वोट प्राप्ति हेतु लुभावने वादे किए जाते हैं और चुनाव समाप्त होने के पश्चात् वादे भुला दिए जाते हैंं।
बहुत सुंदर सर
ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरा एवं जातिवाद का बोलबाला है वह भी इन क्षेत्रों में विकास के लिए बाधक सिद्ध होता है।
जनतांत्रिक प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। एवं जनमानस में निस्वार्थ सेवा भाव एवं राष्ट्र के विकास हेतु समर्पण भाव की मानसिकता को जागृत करना होगा , तभी कुछ सकारात्मक परिणाम संभव हो सकेंगे।
धन्यवाद !
बहुत सुंदर कम से कम आपने तो और समझा भी बस , लेकिन हम नसमझते हुए भी लोग बहस पर उतारू हो जाते हैं।यह हमारे देश की विडम्बना है । मुझे बहुत अच्छा लगा पढ़ा धन्यवाद आपका जी