उत्तम सोच का परिचय है यह रचना
धन्यवाद !
समसामयिक विषयों पर अपनी बेलाग टिप्पणी करने में आप प्रवीण हैं, निर्धनता अभिशाप की तरह है जिसका निवारण जन-सरोकारों के लिए चुनी गई सरकार से अपेक्षित है किन्तु आज तक यह अभियान हिचकौले खाते हुए ही चल रहा है, इस पुनीत कार्य के लिए जन जागरूकता का भी अभाव रहा है और साथ ही असंवेदनशीलता ने भी इसे मंजिल तक पहुंचने में अवरोध पैदा किया लेकिन यह सब भी करने के उपरांत कुछ लोगों की प्रवृत्ति आश्रित बन जाने की हो गई है, इसके लिए आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है किंतु सरकारों की इच्छा शक्ति बहुत कमजोर और लागू करने वालों का दृष्टिकोण बहुत ही सतही व कामचलाउ तथा दिखाने के लक्ष्य प्राप्त करना भर रह गया है! आपकी चिंताओं से स्वयं को जोड़ते हुए इनके लिए निजी प्रयासों से जो बन पड़ता है करना अपना मानव धर्म समझता हूं।सादर प्रणाम श्रीमान श्याम सुंदर जी।
साधुवाद !
“”विपन्नता””
वर्तमान में एक ऐसा नासूर बन चुका है जिस पर कवि लेखकों के अतिरिक्त किसी का ध्यान नहीं जाता।
कथनों वक्तव्य में लोग सहानुभूति जरूर बटोर लेते हैं पर आत्मिक लगाओ शायद उनके अंतरण में संभव नहीं है।
“”युवा वेतन साथी जब अभाव में अपना जीवन जीते हैं तो वह ऐसे कहीं मोड़ों पर भ्रमित हो जाते हैं जहां उन्हें होना न था पर क्या करें!
आप हम विचारों के माध्यम से तो उनकी विपन्नता उनकी दरिद्रता नहीं मिटा सकते इसके लिए निश्चित ही समाज में ऐसा ढांचा निर्मित करना पड़ेगा जो निस्वार्थ भाव से ऐसे विप्पन तरुण युवा साथियों का सहयोग कर उन्हें अपने वांछित लक्ष्य पर पहुंचा सके आपकी प्रस्तुति हृदय को छू गई धन्यवाद आभार आदरणीय।
प्रणाम।
प्रोत्साहन का साधुवाद !
आज कल का युवा वर्ग बहुत भृमित हो गया है उसको गूरू की पहचान नही है ।वह आपकी अच्छी बात सुनना पसंद नही करते है।
वर्तमान का युवा नकारात्मकता के वातावरण में सकारात्मक सोच को कोरी राजनैतिकता युक्त भाषणबाजी समझता है। जो उसकी व्यक्तिगत सोच ना होकर समूह की मनोवृत्ति का परिचायक है। हमारे सोशल मीडिया फेसबुक ,ट्विटर , व्हाट्सएप यूट्यूब इत्यादि में जोर जोरों से समूह सोच को बढ़ावा दिया जाता है। जिसके कारण आजकल युवाओं में व्यक्तिगत सोच का अभाव हो गया है। किसी भी सही सोच को गलत एवं गलत सोच को सही सिद्ध किया जाता है। इसी प्रकार की भावना का प्रसार एवं प्रचार किया जाता है।
सामाजिक चेतना जागृत हो, बहुत सुंदर भाव। आपको सादर नमस्कार।
जीवन के कटु यथार्थ के अनुभवों के आधार पर मेरे विचारों मेंं निहित प्रस्तुत भावना के समर्थन का साधुवाद !
समसामयिक सुंदर चिंतन। किंतु जिन्हें चिंतन मनन और इन सबके प्रति ठोस हितकारी कार्य करने चाहिए वे तो अपने साम्राज्य विस्तार की लालसा में फल फूल रहे हैं । उन्हें सद्बुद्धि कैसे आए ।
समाज के प्रत्येक वर्ग को गरीब एवं शोषित के प्रति संवेदनशीलता एवं सहृदयता युक्त जागृत मनस से उनके कल्याण हेतु प्रयास करना पड़ेगा। केवल शासन व्यवस्था पर निर्भर रहने से हल नहीं निकलेगा।
अपनी सामर्थ्य केअनुसार हर व्यक्ति को गरीबों के उत्थान के कल्याणकारी कार्यो में योगदान प्रदान करने की आवश्यकता है।
मुख्यधारा एक राजनितिक शब्द है जो राजनितिक प्रचार के लिए अच्छा है क्योंकि लोगो के पास कुछ ऐसे शब्द पहुंचाए जाय जिससे उनको शब्दों के जाल में भ्रमित किया जा सके।
राजनीतिज्ञों द्वारा “मुख्यधारा” शब्द के उपयोग में उनका मंतव्य भ्रम पैदा करना हो सकता है । परंतु मेरा तात्पर्य समाज द्वारा उपेक्षित गरीब वर्ग के प्रति संवेदना उत्पन्न कर उनके कल्याण हेतु भावना को जागृत करना है ।
किसी शब्द में निहित भावना का दुरुपयोग उस शब्द का भावार्थ नहीं बदल देता है । यह उस शब्द का उपयोग करने वाले एवं उसका अर्थ निकालने वाले की सोच पर निर्भर करता है।
अति सुन्दर प्रस्तुति|
धन्यवाद !