Comments (6)
Jaikrishan Uniyal
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2 Mar 2021 09:23 AM
आभारी हूं आपका चतुर्वेदी जी, जो कुछ कमी रह गई थी वह आपने व्यक्त कर दी, कभी कभी सोचते-सोचते कुछ बातें याद आकर भी विस्मृत हो जाती हैं,जिसकी अनुभूति तत पश्चात होती है।सादर प्रणाम।
1 Mar 2021 08:15 AM
जाने मुझे ये क्या हो गया है,मेरा मानस कहीं खो गया है। अच्छा खासा था, जाने क्यों मैं मैं हो गया है।। बहुत सुंदर उनियाल साहिब आपको सादर प्रणाम।
28 Feb 2021 10:59 PM
“मै” ने मेरा सब कुछ बदला।
“मै” जब जब नहीं संभला।
मै “के कारण ही तो,
“मै “ने ही मुझे अहंकार में बदला।।
आदरणीय उनियाल जी **में** की सुंदर व्याख्या!
Jaikrishan Uniyal
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28 Feb 2021 08:49 PM
धन्यवाद श्रीमान श्याम सुंदर जी, आपकी रचनात्मक संस्तुति प्राप्त होती रहे, ताकि ऊर्जा बनी रहे।
28 Feb 2021 07:47 PM
अहम् भावनाचक्र की सुंदर संदेशपूर्ण प्रस्तुति !
धन्यवाद !
राजेश जी धन्यवाद, मैं से मुक्त होना काफी दुरुह काम है, फिर भी जितना इस से बचा जा सके बचने का प्रयास है,सादर अभिवादन।