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प्रशांत जी, यह एक तरफा भी नहीं है, ठोकर खाकर भी जब ना संभले तो, फिर दूसरे का दोष ज्यादा नहीं बडा है,क्यों हम लकीर के फकीर बनें हुए हैं, अभी तो जनता का भ्रम बना हुआ है,कब तक रहेगा यह देखने को मिलेगा भी या नहीं,क्या पता है।
समय हल तो करता है मगर देर भी करता । धन्यवाद सर
बहुत सुंदर सर
धन्यवाद सर
प्रशांत जी, यह एक तरफा भी नहीं है, ठोकर खाकर भी जब ना संभले तो, फिर दूसरे का दोष ज्यादा नहीं बडा है,क्यों हम लकीर के फकीर बनें हुए हैं, अभी तो जनता का भ्रम बना हुआ है,कब तक रहेगा यह देखने को मिलेगा भी या नहीं,क्या पता है।
समय हल तो करता है मगर देर भी करता । धन्यवाद सर