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7 Feb 2021 04:16 PM

प्रशांत जी, यह सोलह आने सच है कि आज का युग सिर्फ सर्वार्थ सिद्धि में तल्लीन हो रहा है, किसी के योगदान की किसी को परवाह नहीं है, लेकिन अपने काम को सबसे अधिक कीमती जताने से हिचकिचाहट नहीं महसूस करते, इसीलिए आज ना तो किसान अन्नदाता रहा,ना जवान रक्षक, और ना डाक्टर भगवान! किन्तु वह लोग जो क्षण भर के लिए कोई सहायता कर लें,हम उसके अहसान मंद हो जाते हैं एवं उसके लिए बार बार उसका अहसास कराने लगते हैं, जबकि जो काम उसके द्वारा किया गया होता है वह उसकी जिम्मेदारी का अहम हिस्सा होता है,तब हमें नहीं लगता कि यह भी तो उसके काम का एक हिस्सा था जो उसने किया है, बस अपनी परेशानी से बचने के लिए हम उसे लोभ लालच में भी डाल देते रहे हैं, जिसका परिणाम यह है कि अब आम आदमी को अपने काम का मुल्य चुकाने के लिए प्रस्ताव किया जाता है कि काम होने का यह दाम है करना है तो बताओ नहीं तो फिर अपने ढंग से कराते रहो,हो जाएगा तो ठीक है नहीं तो फिर मुझसे मिल लेना, ।और तब तक दाम बढ़ चुके होते हैं, और जरुरत मंद ले दे के काम कराने का प्रयास करना चाहता है, व्यवस्था चरमरा गई है, और इसी में रहना सीख रहे हैं! अन्यथा यदि यही किसान शासन प्रशासन में बैठे हुक्मरान तक थैली भेंट कर लेता तो, तो वेतन आयोग की तरह उसके लाभ के लिए भी कोई तरीका ढूंढ लिया गया होता!

7 Feb 2021 03:51 PM

धन्यवाद रीतू जी,आपका आभार!

बहुत सुंदर प्रस्तुति सर

जो सत्ता पुरे देश से अपने लिए हर क्षेत्र और स्तर के चुनाव पर वोट ले सकती है ,उसकी बातों से वादों से अब वही वोट करने बाला क्यों नही समझ पा रहा है ।
सड़क पर कील, रॉड ,सरिया, 6-10 फुट गड्ढे, कंकरीट की दीवार ये किसके के लिए है निहत्थे किसानों के लिए अगर उनके पास हथियार है तो उनके खिलाफ हथियारों का प्रयोग करो , अगर वो इतनी तादात में हथियार बन्द है तो यह देश की सुरक्षा व्यवस्था की लाचारी और विफलता है कि उसके होते हुए करोङो किसान हथियार बंद कैसे हो गए उनके पास कहाँ से आ गए ।
ये सब तो स्वतः ही सोचने की बात है ।

हम जिस संस्कृति पर गर्व करते है वर्तमान समय में उसकी हालत घुन लगी लकड़ी की तरह हो गयी है क्योंकि आज कल कोई किसी का एहसान नही रहा सब कुछ लेन देन हो गया है पैसे से जुड़ गया है ,
डॉक्टर भी दूसरे भगवान नही रहे
किसान अन्नदाता नही रहे
सैनिक रक्षक नही रहे
अध्यापक भविष्य निर्माता नही रहे – सब के सब लेने देने बाले हो गए हैं सेवा के बदले धन लेने बाले हो गए हैं , सेवा नाम की चीज नही रही क्योकि भारतीय समाज व्यापारी हो गया है जो केबल धन के बदले जरूरतों का सौदा करता है ।
ये उद्धरण तभी बदलते हैं जब चुनाव होते है उस समय पूरा देश सेवा भाव में डूब जाता है कोई प्रधान सेवक तो कोई चौकीदार तो को नौकर बन जाता है देश का और समाज भी गिरगिट बनकर अपना व्यापर धर्म छोड़ सेवभक्ति में लीन हो जाता है ।
लोग हमको कितनी आसानी से मुर्ख बना देते है सोचने की बात तो ये है जो राजनितिक दल एक एक सीट भी नही जीत पाए आज वो ही दल पुरे करोड़ों किसानों को एक जुट कर सकने की ताकत रखती है अगर ये सच है तो वो झूठ है जिस वोट की गिनती से सत्ता काबिज हुई क्योकि ये किसान ही तो वोट डालते है और ये सत्ता के साथ नही विपक्ष के साथ है ।
आंदोलन हाईजैक बोलना आसान हो गया है क्योंकि हमारी इंग्लिश अच्छी हो गयी है और हिंदी गाँव की भाषा ।

5 Feb 2021 02:44 PM

धन्यवाद श्रीमान चतुर्वेदी जी सादर प्रणाम।

किसानों का आंदोलन हाईजैक हो गया है। आदरणीय आपको सादर नमस्कार। क्या क्या राजनीति चल रही है, देश को वदनाम करने की कोशिश हो रही है। देखिए आगे आगे होता है क्या क्या

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