धन्यवाद श्रीमान चतुर्वेदी जी सादर प्रणाम।
यदि सत्ता पक्ष निरंकुश हो गया है , तो उसका जिम्मेदार विपक्ष स्वयं है। विपक्ष में केवल एक दल नहीं है इसमें कई दल शामिल है जिनमें प्रत्येक के अलग-अलग पार्टी नीति विचार एवं उद्देश्य है। जिसमें राजनीतिक स्वार्थ के लिए सत्ता पक्ष का समर्थन या विरोध शामिल है ।आजकल की राजनीति नीति मूल्यों और मुद्दों के आधार की राजनीति न रहकर जातिगत आधार पर वोट बैंक एवं समर्थन संख्या की राजनीति बनकर रह गई है। जिसमें सत्ता एवं विपक्ष का अधिकांश समय एवं ऊर्जा अपने सदस्यों को पार्टी में बनाए रखने की कवायद में सदस्यों के व्यक्तिगत स्वार्थ की तुष्टीकरण में नष्ट होता है। जनसाधारण की समस्याओं के निराकरण के लिए उनके पास समय कहां रहता है ।
आपका कथन है कि देश में संख्या के आधार पर चुनकर आए द्वितीय स्थान के प्रतिभागी को घोषित विपक्ष की मान्यता प्रदान की जाए , परंतु क्या यह संभव हो सकेगा ? क्या अन्य विपक्षी पार्टियां इसके लिए सहमत होंगीं ?
विपक्षी पार्टियों में भी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए सत्ता का समर्थन करने वाले सदस्यों की कमी नहीं है , और ऐसे अवसरवादी तत्व पार्टी आदर्श एवं नीति को ताक पर रखकर दलबदल करने से भी नहीं चूकते हैं । ऐसी स्थिति में आपके द्वारा सुझाई गई परिकल्पना कहां तक कारगर सिद्ध होगी ? या केवल एक संभावित प्रश्न बनकर रह जाएगी ?
धन्यवाद !
सही कहा आपने आपको सादर नमस्कार धन्यवाद सर।
सम्मानित श्याम सुंदर जी सादर, आपने विपक्ष को काफी बंटा हुआ स्वीकार किया है जो कि है भी, और वर्तमान में ऐसा विपक्ष कारगर भी नहीं हो सकता,मेरा मंतब्य यह है कि जब जनता अपने प्रतिनिधि को चुनती है तो एक विजयी घोषित हो जाता है और दूसरा थोडे से अंतराल से पराजित, पराजित प्रत्याशी यदि पार्टी विशेष का है तो वह खाली रह कर नकारात्मक दृष्टिकोण से आगे बढ़ता है जबकि यदि उसको मान्यता प्राप्त विपक्ष का स्तर मिल जाए तो उसकी वैधानिक जिम्मेदारी बढ़ जाएगी और वह विजयी घोषित के हर काम की समी, और इसके लिए विपक्ष से ज्यादा सरकार को असहमति हो सकती है, फिर भी यह मेरी अपनी सोच पर निर्धारित है, जिसे स्वीकारना शायद मुश्किल है लेकिन इससे विपक्ष की खाली जगह को भर कर उसकी पूर्ति की जा सकती है, तथा सरकार या विजयी घोषित को मनमानी करने से रोका जा सकता है। और ऐसा करके सरकार तथा विपक्ष के साथ साथ जनता का ही भला होगा,रही बात अव्यवहारिक होने की तो पहले पहल यह थोड़ा बहुत असहज सा लगे किन्तु इससे कितने ही लोगों को काम करने का अवसर मिलेगा, समाज में बेरोजगारी का आंकड़ा भी कम होगा,क्यों कि जितने लोग जीतेगे उतने हारने के बाद भी जन सरोकारों से जुड़े हुए रहेंगे ््व््वि््व््व््व््वि््व््