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Comments (10)

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15 Jan 2021 10:25 PM

जीवन के यथार्थ को परिलक्षित करती रचना में दुनियादारी के दल दल में उलझे रहने की व्यथा कथा का भाव पूर्ण चित्रण किया है,सादर प्रणाम श्रीमान चतुर्वेदी जी।

आपको सादर नमस्कार धन्यवाद सर

15 Jan 2021 03:07 PM

बहुत सुंदर सर बहुत सुंदर

आपको सादर अभिवादन धन्यवाद सर

सुंदर शब्द चित्रण।

आपको सादर नमस्कार धन्यवाद सर

अतिसुंदर तत्वज्ञान की प्रस्तुति !

धन्यवाद !

आपको सादर प्रणाम धन्यवाद सर

15 Jan 2021 08:06 AM

मन से मन गर मिल जाए।
कुछ ऐसा कर जाएं,
जाना तो पड़ेगा हम सब को अकेले ही,
जाने से पहले छाप अपनी छोड़ जाएं।।
*जगत का मेला*सुंदर प्रस्तुति के लिए चतुर्वेदी जी नमस्कार सुप्रभात!!

आपको सादर नमस्कार धन्यवाद सर

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