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6 Jan 2021 04:39 PM

बहुत बढ़िया सृजन ????

आपको सादर नमस्कार धन्यवाद

बहुत ही सुंदर रचना

आपको सादर नमस्कार धन्यवाद सर

6 Jan 2021 11:07 AM

लक्ष्य पर संधान कर! मनुष्य को अपने कर्तव्य का निर्वाह करते रहना है, बिना किसी परिणाम की इच्छा जताए! श्रीकृष्ण जी ने यही तो कहा!बस हम ही भटक रहे हैं मृगतृष्णा में! सादर प्रणाम श्रीमान चतुर्वेदी जी।

आपको सादर प्रणाम धन्यवाद सर

अतिसुंदर भावयुक्त संदेशपूर्ण प्रस्तुति।
धन्यवाद !
आपकी कविता से मुझे हरिवंश राय बच्चन की अग्निपथ कविता याद आ गई जो प्रस्तुत कर रहा हूं :

तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
तू न झुकेगा कभी
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ ,अग्निपथ।
यह महान दृश्य है चल रहा मनुष्य है
अश्रु , स्वेद , रक्त से
लथपथ, लथपथ ,लथपथ
अग्निपथ ,अग्निपथ ,अग्निपथ

बहुत सुंदर कविता, आपको सादर प्रणाम धन्यवाद सर

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