अभिव्यक्ति की आजादी प्राकृतिक देन है किंतु समाज में इसके लिए युक्ति युक्त बन्धन भी है जो व्यक्ति और सत्ता दोनों के लिए समान रूप से जरूरी है क्योंकि व्यक्ति ही सत्ता है । अगर सत्ता क़ानूनी रूप ईमानदारी का व्यवहार करे तो तराजू के दोनों पलड़ों को संतुलित किया जा सकता है किंतु सत्ताधिकारी सस्ती लोकप्रियता और स्वार्थवश ऐसे प्रयोग करती है और ऐसे प्रयोगों को बढ़ाबा देती है जिनसे प्राकृतिक और सामाजिक आजादी और बन्धन का ताना बाना बिगड़ जाता है । सत्ता पूर्णरूप से सक्षम में प्रेम में भी और हथियार में भी किन्तु सत्ता इनका प्रयोग स्वार्थ सिद्धि में करती है जिसकी बजह से संतुलन बिगड़ता है और सत्ता और सत्ता के प्रचारक फिर घड़ियालु आँसूँ बहाकर कैद और प्रताड़ना को जरूरी बताते है क्योंकि उनको लगता है कि अभिव्यक्त का कारण अति लोकत्रंत्र है ना कि उनका व्यवहार ।
सही बात है,पर आजकल देश दुनिया में अराजक तत्वों एवं राजनीतिक पार्टी इस का दुरपयोग करते हैं। आपको सादर नमस्कार धन्यवाद सर।
“शब्द सम्हारे बोलिए शब्द के हाथ न पांव एक शब्द औषधि करें एक शब्द करे घाव!!”
उक्त दोहा आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना लिखते वक्त रहा होगा!! तोल मोल कर बोल, बेवजह ना जवाब को खोल। यही भाव समरसता पैदा कर सकता है!! धन्यवाद सर जी!
बहुत सुंदर सर नमस्कार धन्यवाद सर
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग जो आजकल हो रहा है वह एक निकृष्ट कृत्य है।
किसी व्यक्ति विशेष के बारे में मिथ्या प्रचार कर चरित्र हनन की कुत्सित चेष्टाऐं आम बात हो गई है। किसी छोटी सी बात को तूल देकर पेश करना तथा झूठ को सच बनाने की कोशिश करना आजकल प्रसार माध्यमों की व्यक्तिगत स्वार्थ नीति बन गई है। सोशल मीडिया में भीड़ की मनोवृत्ति को बढ़ावा दिया जाता है ।जनसाधारण की व्यक्तिगत सोच पंगु होकर रह गई है। कुछ विशेष तत्व अपने आप को जनता के ठेकेदार मान चुके हैं और अपने अनर्गल प्रलाप से देश में कटुता हिंसा एवं अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। इन सभी तत्वों को संगठित होकर करारा जवाब देने की आवश्यकता है। तभी हम देश की जनता में सहअस्तित्व की भावना एवं देश की अक्षुणःता बनाए रखने में सफल हो सकते हैं।
सही बात है, आपको सादर प्रणाम धन्यवाद सर।
बहुत खूब चतुर्वेदी जी बहुत उत्तम बहुत अच्छा लिखा आपने धन्यवाद धन्यवाद जय श्री राम
आपको सादर नमस्कार धन्यवाद सर