किसान आन्दोलन पर निर्ममता से वार करती आपकी रचना में एक पक्षीय दृष्टि कोण नजर आया,हो सकता है इसमें कुछ लोग नीजि हितों से जुड़े हुए हों, किन्तु किसान यदि इतना ही सुखी होता तो अपने जीवन की बलि अपने घर गृहस्थी के पालन-पोषण से हार कर जान नहीं दिया करता! आज आलू चालीस रुपए पर बिक रहा है, लेकिन किसान को मिल रहा है छः-सात रुपए, उसके पास ना तो भंडारण क्षमता है और ना ही निकटतम बाजार!खेत से बाजार तक का ढुलान भी घोड़े खच्चर पर करके सड़क पर पहुंच पाता है तब वहां से मंडी के लिए भेजता है, और औने पौने जो मिला उसी को लेकर अपने जरुरत की सामग्री खरीदने चल पड़ता है! इस लिए मैं आपसे असहमति जता रहा हूं, धृष्टता के लिए क्षमा चाहूंगा,सादर प्रणाम
मैं सहमत हूं, किसान राजाओं, अंग्रेजों एवं स्वराज्य में भी परेशान हो रहा है,ने कानून में ऐसा कुछ नहीं है, जिसमें किसानों को परेशानी हो। फिर वैठ कर बातें हो सकती हैं। सरकार शंका निवारण कर भी रही है। मैं किसी भी राजनीतिक पार्टी से प्रेरित नहीं हूं। मैं दिनों दिन देख रहा हूं, धर्म जाति अंचल भाषा एवं अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की जगह राजनीति करती नजर आती हैं।
किसान आन्दोलन पर निर्ममता से वार करती आपकी रचना में एक पक्षीय दृष्टि कोण नजर आया,हो सकता है इसमें कुछ लोग नीजि हितों से जुड़े हुए हों, किन्तु किसान यदि इतना ही सुखी होता तो अपने जीवन की बलि अपने घर गृहस्थी के पालन-पोषण से हार कर जान नहीं दिया करता! आज आलू चालीस रुपए पर बिक रहा है, लेकिन किसान को मिल रहा है छः-सात रुपए, उसके पास ना तो भंडारण क्षमता है और ना ही निकटतम बाजार!खेत से बाजार तक का ढुलान भी घोड़े खच्चर पर करके सड़क पर पहुंच पाता है तब वहां से मंडी के लिए भेजता है, और औने पौने जो मिला उसी को लेकर अपने जरुरत की सामग्री खरीदने चल पड़ता है! इस लिए मैं आपसे असहमति जता रहा हूं, धृष्टता के लिए क्षमा चाहूंगा,सादर प्रणाम
मैं सहमत हूं, किसान राजाओं, अंग्रेजों एवं स्वराज्य में भी परेशान हो रहा है,ने कानून में ऐसा कुछ नहीं है, जिसमें किसानों को परेशानी हो। फिर वैठ कर बातें हो सकती हैं। सरकार शंका निवारण कर भी रही है। मैं किसी भी राजनीतिक पार्टी से प्रेरित नहीं हूं। मैं दिनों दिन देख रहा हूं, धर्म जाति अंचल भाषा एवं अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की जगह राजनीति करती नजर आती हैं।