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25 Nov 2020 10:45 AM

श्रद्धेय चतुर्वेदी जी, आज ही सुबह मेरे गांव का एक नौजवान अकाल मृत्यु को प्राप्त कर गया, मैं उसके गम में काफी उद्धिग्न हो रहा था,मेरा प्रेमी नवयुवक अपने असहाय परिवार को बेसहारे छोड़ गया, इस व्याकुलता की घड़ी में आपकी रचना पर नज़र गयी, पढ़ कर अपने बचपन और उस बालक के बचपन की यादों को याद करते हुए यह समझने का प्रयास कर रहा हूं,कितनी उमंगों के साथ हम क्या-क्या सपने बुनने लगते हैं, और एक झटके में मृत्यु अपने आगोश में ले कर चल देती है, और हम अवाक रह जाते हैं!सादर प्रणाम, कहीं कुछ अनुचित लगे तो क्षमा कीजिएगा।

श्रद्धांजलि

शब्द हुए हैं मौन, हृदय व्यथित मन भारी
छलके आंखों में अश्रु बिंदु, दिल में तस्वीर तुम्हारी
नहीं भूल पाएंगे तुमको, जब तक जान हमारी
रोम रोम है ऋणी आपका, अंतिम अरदास हमारी। आदरणीय आपको सादर नमस्कार। जीवन यात्रा ईश्वर की जाती, ये घटती है न बढ़ती है। जितनी जिसे मिलीं हैं सांसें बस उतनी ही चलतीं हैं।

कृपया जाती शब्द को थाती पढ़ें।

24 Nov 2020 08:31 PM

Bahut sunder

आपका हृदय से आभार धन्यवाद

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