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सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति।

उच्चारण त्रुटि गार्मी के स्थान पर गर्मी
कष्ट सहती के स्थान पर कष्ट हरती उचित प्रतीत होता,
काव्य की प्रेरणा है यह पावन सरिता,
ईश्वर की अद्भुत रचना है यह पावन सरिता,

इसी प्रकार कुछ भाव मैंने अपनी रचना “धारा” मे प्रस्तुत किए हैं जो इस प्रकार हैं :

कोमल सामान लिए हर किसी को अपने में समाहित किए
अनवरत उसकी बढ़ते रहने की प्रकृति सतत।
कभी तोड़ती दंभ इन चट्टानों का विकराल ।
कभी मोड़ती खुद को लिए हृदय विशाल।
करती कृपा तो बिखराती खुशियों के प्रपात ।
रौद्र रूप में बनी काल तो फैलाती अवसाद् ।
जब चाहा रंग लेती खुद को दूसरों के रंग में ।
तो कभी उड़ाती रंगत सबकी रहकर संग में ।
कभी सुनाती मधुर संगीत कलरव ध्वनि से ।
तो कभी मोहती मन चपल षोडशी नारी सी अपनी छवि से।
करती ओतप्रोत हर मानव को वह इस प्रेरणा से सदा।
धीरज रखने और जूझने इस संसार के समय चक्र से सर्वदा।

धन्यवाद !

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