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दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला ,
वो ही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला ,
क्या कहें कितने मरास़िम थे हमारे उससे ,
है वही शख्स़ जो मुंह फेर के जाने वाला ,
तुम तक़ल्लुफ को भी अख़लाक समझते हो ,
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला ।

श़ुक्रिया !

वाह!महोदय,बहुत बढ़िया??

बहुत सुंदर

धन्यवाद महोदय?

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