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आपकी क्रांतिकारी विचारधारा का स्वागत है।
हमारे देश में क्षेत्रीयता, जातीय भेदभाव एवं वंशवाद के चलते यह अत्यंत दुष्कर प्रयास है। हमारे देश की राजनीति में जातिवाद का बोलबाला है। जाति के आधार पर लोक प्रतिनिधियों का चुनाव होता है और जोर शोर से जातिगत भावनाओं को उभार कर राजनैतिक स्वार्थ पूरे किए जाते हैं। वर्तमान वोट बैंक नीति का आधार जाति ही है। जाति की परिभाषा मैं एक नाम नया नाम दलित जुड़ गया है जिसमे अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए किसी भी जाति को जोड़ दिया जाता है। प्रशासन में भी जातिवाद का बोलबाला है और विशिष्ट जाति के लोगों को वरीयता दी जाती है। उच्च जाति के अधिकारियों द्वारा निम्न जाति के कर्मचारियों को प्रताड़ित किया जाता है और उनके पदोन्नति के अवसर में बाधाएं उत्पन्न की जातींं हैं।
शासकीय अधिकारियों का तालमेल राजनीतिज्ञों से रहता है। जिसका फ़ायदा वे परस्पर स्वार्थ की पूर्ति के लिए उठाते रहते हैं। पुलिस प्रशासन भी इससे अछूता नहीं है। उसमें भी जातिवाद का बोलबाला है। अपराधियों से सांठगांठ में भी जाति की एक बड़ी भूमिका है। इन सभी के चलते सामाजिक परिवर्तन के लिए जातिगत नामों के उपयोग में रोक लगाने की प्रक्रिया में व्यावहारिकता पर मुझे संदेह है।
यह बिना किसी पूर्वाग्रह के मेरे स्वतंत्र विचार हैं जो मैंने प्रस्तुत किए हैं।

धन्यवाद !

2 Aug 2020 08:15 PM

संवेदनशील मुद्दा, जाति का इस्तेमाल सामाजिक सदभाव के लिए खतरा है।

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